मानसिक स्वास्थ्य को लेकर युवाओं में बढ़ती जागरूकता, ऑनलाइन काउंसलिंग में रिकॉर्ड वृद्धि

मुख्य बिंदु (Highlights):

  • 2025 में ऑनलाइन काउंसलिंग में 62% की वृद्धि

  • युवाओं में अवसाद, एंग्ज़ायटी और तनाव के मामलों में लगातार इज़ाफा

  • "माइंडफुलनेस", "थेरेपी" और "मेंटल वेलनेस" जैसे कीवर्ड्स की ऑनलाइन सर्च में उछाल

  • विशेषज्ञों की सलाह: योग, ध्यान और प्रोफेशनल हेल्प लें

बढ़ती मानसिक चुनौतियाँ और युवा वर्ग

कोविड-19 महामारी के बाद से ही मानसिक स्वास्थ्य एक बड़ा मुद्दा बन गया है। युवाओं के बीच तनाव, चिंता (Anxiety), अवसाद (Depression) और अकेलेपन जैसी समस्याएं काफी तेज़ी से सामने आई हैं। पढ़ाई, करियर, रिश्ते और सोशल मीडिया से उत्पन्न दबाव ने मानसिक संतुलन को प्रभावित किया है।

विशेषकर 18 से 30 वर्ष के युवा अब मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अधिक सचेत और जागरूक हो गए हैं। पहले जहां काउंसलिंग को हिचकिचाहट से देखा जाता था, वहीं अब इसे सामान्य और ज़रूरी माना जा रहा है।

ऑनलाइन काउंसलिंग बनी पहली पसंद

रिपोर्टों के मुताबिक, वर्ष 2025 के पहले छह महीनों में देशभर में ऑनलाइन काउंसलिंग लेने वालों की संख्या में 62% की बढ़ोतरी हुई है। "BetterHelp India", "YourDOST", "MindPeers", "Manoshanti", जैसे प्लेटफॉर्म्स पर बुकिंग में बेतहाशा वृद्धि देखी गई है।

डॉ. अनुपमा शर्मा (क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट) कहती हैं,

"अब युवा मानसिक स्वास्थ्य को लेकर ओपन हैं। वे समझते हैं कि जैसे शारीरिक बीमारियों का इलाज होता है, वैसे ही मन की पीड़ा का भी इलाज जरूरी है।"

डिजिटल तकनीक और ऐप्स से सुविधा

टेली-थेरेपी, व्हाट्सएप चैट सपोर्ट, ऑडियो/वीडियो काउंसलिंग और सेल्फ-हेल्प ऐप्स (जैसे Calm, Headspace, InnerHour) ने मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को किफायती और सुलभ बना दिया है। अब हर किसी के लिए एक प्रोफेशनल तक पहुँचना आसान हो गया है, चाहे वो गांव में हो या शहर में।

स्वस्थ मन के लिए सुझाव

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने युवाओं को कुछ बुनियादी सुझाव दिए हैं:

  • रोज़ाना कम से कम 20 मिनट मेडिटेशन करें

  • दिनभर में 1 घंटा मोबाइल/सोशल मीडिया से दूर रहें

  • एक डायरी में अपने विचार लिखें

  • जरूरत होने पर तुरंत काउंसलर या मनोवैज्ञानिक की मदद लें

  • परिवार और दोस्तों से संवाद बढ़ाएं

समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सोच बदल रही है, और युवा अब खुलकर बात कर रहे हैं। यह एक सकारात्मक संकेत है, जिससे न केवल व्यक्तिगत जीवन बेहतर होगा, बल्कि एक स्वस्थ और संवेदनशील समाज की नींव भी रखी जा सकेगी।

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